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आहार

Friday, 27 December 2024

आईये वैज्ञानिक विधि से अमरूद और करौंदे की स्वादिष्ट जैली बनायें

 


जैली, निश्चित  मात्रा में फल का रसशक्कर एवं सिट्रिक अम्ल को निश्चित समय तक उबाल कर तैयार  किया गया चिकनास्वादिष्ट (मीठा खट्टा) चमकदारपारदर्शीआकर्षकउपयोग में लाये गये फल के सुगंध से युक्त खाद्य पदार्थ है । जिसमें 60-65 प्रतिशत शर्करा1 प्रतिशत फल में उपस्थिति अम्ल तथा 33-38 प्रतिशत जल उपस्थित होता है । यह के ऐसा उत्पाद है जिसे, जब चम्म्च से काटा जाये तो चम्मच से काटने का निशान, उतपाद पर चम्म्च को हटाने के बाद भी दिखे ।


जैली निर्माण का उद्देशय :

आमतौर पर, करौन्दा और अमरूद ऋतु विशेष में ही सेवन हेतु उपलब्ध होते हैं । अन्य ऋतुओं में भी इन फलों में उपस्थित पोषक तत्व का लाभ तथा स्वाद का आनन्द प्राप्त करने के लिये जैली जैसे परिरक्षित तथा पौष्टिक उत्पाद का निर्माण किया जाता है जो कि लम्बे समय में खाने योग्य अवस्था में रखा जा सकता है । बच्चे और बड़े सभी जैली को रोटी और ब्रैड पर लगा कर बड़े चाव से  खाते हैं।


जैली निर्माण का सिद्धांत : 

जैली के निर्माण हेतु पैक्टिन (यह फलों में प्राकृतिक रूप से छिल्कों के नीचे उपस्थित होता है तथा यह बाज़ार में भी उपल्ब्ध  है) शक्कर एवं जल (जल में घुलनशील फल का रस) आवाश्यक है जो आपस में जैल बनाते हैं । इस जैल में फलों का रस, बँधी हुई अवस्था में होने के कारण खाद्य पदार्थ को दूषित करने वाले सूक्ष्मजीवों को उपलब्ध नहीं हो पाता है, अत: जैली लंबे समय तक खराब नहीं हो पाती है जैली के निर्माण हेतु पैक्टिन (यह फलों में प्राकृतिक रूप से छिल्कों के नीचे उपस्थित होता है तथा यह बाज़ार में भी उपलब्ध  है) शक्कर एवं फलों का रस आवाश्यक होता है ।

 

जैली निर्माण की विधि :

1.      साफस्वस्थआकर्षकताज़ेसुगन्धित एवं अधपके फल जैसे अमरूद अथवा करौन्दा का चुनाव करें जिसमें आवाश्यक मात्रा में पैक्टिन और अम्ल उपस्थित हों । ध्यान रहे कि कच्चे अथवा पके फलों का उपयोग जैली बनाने के लिये नहीं करें ।

2.      फलों को साफ बहते हुये जल से 2 मिनिट तक हाथ से रगड़कर धोयें । सुनिश्चित करें कि फल में किसी भी प्रकार की गंदगी न लगी हुई हो । फलों के डंठल एवं बीज इत्यादि चाकू की सहायता से निकाल कर साफ करें ।

3.      अमरूद को पतले एवं गोल चिप्स के आकार में काट लेंकरौंदे को दो भाग में लम्बवत् काट कर बीज निकाल कर अलग कर लें ।

4.      अमरूद फल के चिप्स अथवा करौन्दे के टुकड़े को पूर्ण रूप से डूबने हेतु आवाश्यक मात्रा में स्वच्छ पीने योग्य मीठे जल का उपयोग करें । गंज में इतनी मात्रा में पानी लें जितने में फल के कुछ ऊपरी सतह के  चिप्स / टुकड़े ही बाहर निकालें बाकी सभी चिप्स/टुकड़े भली-भाँति पानी में डूब जायें । फल के चिप्स / टुकड़े  को मोटे पेंदे के गंज / भगौने में रखें ।  गंज / भगौने को मध्यम से तेज़ आँच में बिना चलाये इस प्रकार उबालें कि फल के चिप्स / टुकड़े जलें नहीं तथा पेंदी में नहीं लगें ।

5.      मलमल (सूती) के सफेद और साफ धुले हुये कपड़े की चार पर्त तैयार कर रस छानें ।

6.      प्राप्त रस में से एक चम्मच फल का रस तथा दो चम्मच स्प्रिट मिलायें तथा एक से दो मिनट के लिये इस घोल को स्थिर रखें । रस एवं स्प्रिट के मिलने से गाढ़े (एक भाग में) अथवा पतले (दो या तीन भाग में) अवक्षेप (थक्के) का निर्माण होगा । जिससे रस में विद्यमान पैक्टिन की जाँच की जाती है । इस प्रक्रिया में यदि  १ गाढ़ा थक्का बने तो समझें कि रस में आवश्यक मात्रा में पैक्टिन उपस्थित है । इस प्रक्रिया में यदि २ से ३ थक्के बनें जो कुछ पतले हों तो समझें कि रस में पैक्टिन मध्यम मात्रा में उपस्थित है । यदि थक्के की अनेकों छोटी-छोटी बूँदें बनें तो समझें कि रस में पैक्टिन बहुत कम मात्रा में उपस्थित है । यदि रस में अधिक अथवा मध्यम मात्रा में पैक्टिन उपस्थित हो तो इस रस का उपयोग जैली के निर्माण के लिये किया जा सकता हैकिंतुयदि रस में पैक्टिन की मात्रा कम है तो इस स्थिति में रस का उपयोग जैली बनाने में नहीं करें अन्यथा उत्तम गुणवत्ता की जैली का निर्माण नहीं हो पायेगा । घरेलू स्तर पर इस परीक्षण को करने की बहुत आवश्यकता नहीं है ।

7.      गिलास की सहायता से रस नापें । यदि स्पिरिट परीक्षण किया है तोअवक्षेप गाढ़ा होने की स्थिति में तीन-चैथाई गिलास शक्कर प्रति गिलास मिलायें और यदि अवक्षेप पतला हो तो आधा गिलास शक्कर प्रति गिलास रस में मिलायें । स्प्रिट उपलब्ध न होने पर एक गिलास रस में आधा गिलास शक्कर प्रति गिलास रस की दर से मिलायें । शक्कर को रस में अच्छी तरह से घोलें । तत्पश्चात् घोल को मध्यम से तेज़ आँच पर उबालें । ध्यान रखें कि शक्कर साफ और अच्छी गुणवत्ता की हो ।

8.      प्रति किलो फल के रस में 2 से 3  ग्राम सिट्रिक अम्ल को घोल में मिलायें । सिट्रिक अम्ल उपलब्ध न होने पर तीन से चार चाय के चम्मच के तुल्य नींबू का रस घोल में मिलायें ।

9.      सिट्रिक अम्ल की उपस्थिति में घोल की ऊपरी सतह पर शक्कर में उपस्थित गंदगी (स्कम)झाग के रूप में तैरने लगेगी । इस गन्दगी को चम्मच द्वारा निकाल दें एवं जैली तैयार होने तक उबालें । जैली तैयार हो गई है इस बात को समझने के लिये जैली निर्माण का परीक्षण करें ।

 

जैली निर्माण के परीक्षण की विधि :

जैली निर्माण पूर्ण हो गया हैयह परीक्षण निम्नलिखित तीन में से किसी भी एक विधि से किया जा सकता है ।

(अ) शीट परिक्षण           (ब)  प्लेट परिक्षण           (स)  बूँद परीक्षण

(अ)  शीट परिक्षण :

घोल को चम्मच में लेकर ठंडा करें । चम्मच को तिरछा करें । यदि पूरा घोल एक साथ शीट (पर्त) के रूप में अंग्रेजी का U (यू) अक्षर बनाते हुये गिरे तो समझें कि जैली तैयार है ।

(ब) प्लेट परीक्षण :

घोल को एक चीनी मिट्टी के प्लेट में लेकर ठंडा कर प्लेट को तिरछा करेंयदि संपूर्ण घोल एक बूँद के रूप में नीचे की ओर लुढ़के एवं प्लेट पर घोल का अंश चिपका न रहे तो जैली को तैयार मानें ।

(स) बूँद परीक्षण :

एक बूँदठंडी की हुई जैली को अँगूठे तथा अँगुली के बीच रखकर तार बनायें । यदि एक तार बनना प्रारम्भ हो गया हो तो एक काँच के पारदर्शी गिलास में सामान्य तापमान के जल मेंठंडे किये हुये घोल की बूँद डालें । यदि बूँद बिना फैले गिलास के सतह में बैठ जाती है एवं उँगली से दबाने पर भी बूँद की तरह ही लगती है तो समझें कि जैली तैयार हो चुकी है इस प्रक्रिया को एक सफेद चीनी मिट्टी की प्लेट में भी पानी ले कर यह परीक्षण किया जा सकता है ।

 

बोतल का निर्जिमीकरण की विधि :

बोतल का निर्जमीकरण करने का तात्पर्य है कि बोतल को स्वच्छ कर सूक्ष्मजीवों से मुक्त कर देना ताकि जब जैली बोतल में रखी जाये तो वह दूषित न हो । एक साफ धुला हुआ कपड़ा अथवा तौलियामोटे पेंदे के स्टेनलैस स्टील के गंज के तल में बिछायें । गंज में स्वच्छ एवं मीठा पीने योग्य जल लें । अच्छे डिटर्जेंट से धुली हुई चौड़े मुँह की मोटे एवं मज़बूत काँच की बोतल एवं ढक्कन को गंज में  इस प्रकार रखें कि बोतल एवं ढक्कन पूर्ण रूप से जल में डूब जाये । बोतल एवं ढक्कन को मध्यम आँच  में 15 मिनिट तक इस प्रकार उबालें कि बोतल चटके नहीं । इसके उपरांत बोतल को उबले और ठंडे किये हुये पानी में तैयार पोटैशियम-मेटा-बाय सल्फाईट (परिरक्षक)  के 2 प्रतिशत घोल से भी धोया जा सकता है जो कि बोतल और ढक्कन को निर्जिमीकृत (सुक्ष्मजीवों से मुक्त) करेगा तथा जैली को अतिरिक्त रूप से परिरक्षित करेगा ।

बोतल को कुछ देर तक स्वच्छ सतह पर उल्टा रख कर भीतर उपस्थित  पानी  को (यदि लगा हुआ हो तो) सुखा लें । ध्यान रखें कि बोतल और ढक्क्न को किसी भी कपड़े अथवा हाथ से नहीं पोछें ।


 तैयार जैली को बोतल में भरना :

बोतल को सामान्य तापमान वाली लकड़ी की सतह पर रखें । जैली को ठंडी हो कर जमने के पूर्व बोतल में उड़ेलें । बोतल को ढक्कन से बंद करें । यदि जैली को लम्बे समय के लिये परिरक्षित रखना चाहते हैं तो ढक्कन को मोम से बंद करें । पिघले हुये मोम को ढक्कन और बोतल की चूड़ी के बीचचारों ओर जमा दें ताकि बोतल वायुरूद्व (सीलबंद) हो जाये । बोतल को स्वच्छ स्थान पर रखें । यह मोम विशेष प्रकार का होता है जिसे खाद्य पदार्थों के साथ उपयोग किया जा सकता है और इस प्रकार की मोम को फूड ग्रेड वैक्स कहते हैं । यदि जैली का व्यवसायिक उत्पादन करें तो जैली ठंडी होने के उपरांतबोतल के ऊपरपूर्व से तैयार लेबल चिपकायें ।

 

जैली खराब होने का कारण एवं निराकरण :

1. जैली का सैट न होना:

जैली का सैट होना, जैली का पूर्ण रूप से बन कर तैयार हो जाने की अवस्था को कहते हैं । पैक्टिनअम्ल अथवा शक्कर की अधिकता अथवा कमीमिश्रण का आवश्यकता  से कम अथवा अधिक पकना अथवा धीमी आँच पर लंबे समय तक पकने के कारण, जैली उचित रूप से सैट नहीं हो पाती है । अतः आवश्यक है कि जैली निर्माण के लिये ऐसे ही  का उपयोग किया जाये जिसमेंप्राकृतिक रूप से  पेक्टिन एवं अम्ल (खट्टापन) की उचित मात्रा विद्यमान हो  उदाहरणस्वरूप, जब अमरूद, अधपकाताज़ा एवं सुगन्धित होऐसी ही अवस्था में जैली बनाने के लिये उपयोग में लें। पैक्टिनअम्ल अथवा शक्कर की कमी होने पर इनकी अतिरिक्त मात्रा जैली निर्माण के समय घोल में डालें । पैक्टिन का  परीक्षण एवं जैली के निर्माण परीक्षण सावधानी पूर्वक करें । ध्यान दें लि पैटिन भी बाज़ार से क्रय कर जैली निर्माण के लिये उपयोग में लाया जा सकता है ।

2. पैक्टिन की उपस्थिति का परीक्षण एवं जैली निर्माण परीक्षण :

            फलों में पैक्टिन की उपस्थिति का परीक्षण एवं जैली निर्माण के अंतिम बिंदु का परीक्षणसावधानीपूर्वक करें । घोल को मध्यम आँच पर पकायें । बोतल से चम्मच द्वारा जैली निकालने परचम्मच के द्वारा जैली की सतह पर जैली के कटने का निशान बनना चाहिये जो कि इस ओर इंगित करता है कि जैली अच्छी तरह से बनी है ।
3. अपारदर्शी जैली बनना :

            प्राप्त किये गये रस में गूदे के कण आने के कारणकच्चे फलों का उपयोग करने के कारणआवश्यकता  से अधिक घोल को पकाने के कारणजैली को आवश्यकता  से अधिक ठंडा करने करने के कारणजैली को अधिक ऊँचाई से बोतल में भरने के कारणगंदगी युक्त झाग (स्कम) को न हटाने के कारणपैक्टिन की अधिक मात्रा का उपयोग करने के कारण अथवा समय से पूर्व जैली बनने के कारण अपारदर्शी  जैली का निर्माण होता है । पारदर्शी जैली बनने के लिये रस को अच्छी तरह से छानें । आवाश्यक हो तो रस को तीन से चार घंटे तक स्थिर अवस्था में रखें एवं गूदे के कण बर्तन के निचली सतह में जमने के उपरांत ऊपर के साफ रस को अलग कर लें । मिश्रण को आवश्यकतानुसार पकायें । जैली को आवाश्यक तापमान तक ठंडा करें । बोतल में, जैली को, अधिक ऊँचाई से न भरें । गंदगी युक्त झाग (स्कम) को पूर्ण रूप से निकालें तथा जैली बनाने हेतु अधपकेताज़ा और सुगंधित फलों का ही उपयोग करें जिनमें उचित मात्रा में पैक्टिन एवं अम्ल उपस्थित हो । ध्यान रहे कि पैक्टिन फल की बाहरी सतह के ठीक नीचे पाये जाते हैं ।

4. जैली में शक्कर के दाने बनना :

जैली में अधिक शक्कर की मात्राजैली के अधिक सांद्र (गाढ़ी) अथवा सख्त होने के कारण अथवा जैली निर्माण में कम अम्ल वाले फलों के उपयोग के कारण जैली में शक्कर के कण बनते हैं । जैली में शक्कर के कणों के निर्माण को रोकने के लिये शक्कर की मात्रा नाप कर उचित मात्रा में ही शक्कर को रस में मिलायें । पैक्टिन की उपस्थिति का परीक्षण एवं जैली निर्माण के अंतिम बिंदु का परीक्षण सावधानीपूर्वक करें । घोल को आवश्यकतानुसार पकायें एवं अम्ल की मात्रा की उपस्थिति के अनुसार ही फल का चुनाव करें । फलों में कम मात्रा में पैक्टिन होने की स्थिति में रस में  पैक्टिन अलग से मिलायें तथा रस में पैक्टिन की मात्रा की स्पिरिट विधि  से करते रहें ।

5. जैली से जल अलग होना :

अम्ल की अधिकताशक्कर अथवा घुलनशील ठोस पदार्थ की बहुत अधिक कमीपैक्टिन की आवाश्यक  से कम मात्रा तथा समय से पूर्व जैली बनने के कारण अथवा जैली को पूरी तरह से नहीं पकाने के कारणजैली से जल अलग होता है । इसे वीपिंग जैली भी कहते हैं । अम्लता की अधिकता होने परअधिक पैक्टिन वाले फलों का रस के उपयोग के कारण एवं रस में आवश्यकता से अधिक शक्कर का उपयोग करने के कारण तुलनात्मक रूप से रस में अम्ल की मात्रा कम हो जाती है । समय से पूर्व जैली के बनने से रोकने के लिये रस में लवण जैसे सोडियम सिट्रेटडायसोडियम,हाइड्रोजन सिट्रेट अथवा घर में उपयोग होने वाला सादा नमक (सोडियम क्लोराईड) प्रति किलो रस मे एक या दो चुटकी की दर से मिश्रित करें ।

6. जैली को सड़ने से बचाना :

जैली सेजल अलग होने के कारण, जैली में किण्वन हो सकता है एवं जैली सड़ सकती है । अतः जैली को किण्वन अथवा सड़ने से बचाने के लिये बोतल को निर्जिमीकृत करें एवं जल को जैली से अलग होने से बचायें जिसका उपाय ऊपर पाँचवें बिंदु में दिया जा चुका है । जैली को स्वच्छता पूर्ण वातावरण में बनायें । तैयार जैली को ठ़ंडे स्वच्छसूखे एवं सुरक्षित स्थान पर रखें।

7. चिपचिपी एवं तार वाली जैली :

चिपचिपी एवं तार वाली जैली में शक्कर की मात्रा की अधिकता अथवा अम्ल की मात्रा की कमी अथवा पैक्टिन की मात्रा की कमी के कारण बनती है । जैली को आवश्यकता से कम अथवा आवश्यकता से अधिक पकाने के कारण भी जैली चिपचिपी बनती है तथा जैली में अनावश्यक तार बनते हैं । इस स्थिति से बचने के लिये फलों के रस में पैक्टिन की उपस्थिति की मात्रा का परीक्षण एवं जैली निर्माण का परीक्षण सावधानीपूर्वक करें और पैक्टिनयुक्तअधपकेताज़े और सुगन्धित फलों का उपयोग करें । आवश्यकता  होने पर अतरिक्त मात्रा में पैक्टिन एवं अम्ल को घोल में मिलायें तथा उत्तम गुणवत्तायुक्त जैली बनायें ।

 

सावधानियाँ :

1.      जैली के निर्माण हेतु सिर्फ स्टेनलेस स्टील के बर्तन का ही उपयोग करें ।

2.      जैली के निर्माण के लिये मीठे तथा बहते हुये सवच्छ जल का ही उपयोग करें

3.      जैली के निर्माण के समय स्वच्छता के प्रति सजग रहें । नाखून कटेहाथ साबुन से धुले एवं बाल तथा चूड़ियाँ कपड़े से बँधे हुये होने चाहिये ।

4.      जैली के निर्माण में फलों का चुनाव सावधानीपूर्वक करें ।

 

सामग्री :

फल  का रस: 1 लीटरशक्कर: 500 ग्राम सिट्रिक अम्ल: 2 से 3 ग्राम अथवा नींबू का रस: चार चम्मच एवं पोटैशियम -मेटा-बाय सल्फाईट: 2 ग्रामखाद्य पधार्थ के साथ उपयोग में लाये जा सकने वाला मोम तथा स्पिरिट ।

 

जैली के निर्माण के लिये पैक्टिन एवं अम्ल की मात्रा के अनुसार फलों का वर्गीकरण :

1. पैक्टिन एवं अम्ल की अधिक मात्रा वाले फल :

अधपकेताज़े और सुगन्धित अमरूदकरौंदाकैथापटुआ या अम्बाड़ी खट्टा संतराआँवलाखट्टे अंगूरनींबूप्लम इत्यादि । ऐसे फल जैली बनाने के लिये पूर्ण रूप से उपयुक्त है । मध्य भारत में जैली बनाने के लिये सर्वाधिक उपयोग अमरूदकरौन्दा और कैथे (कबीट) का होता है ।

2. कम मात्रा में पैक्टिन और अम्ल पाये जाने वाले फल :

पका सेवलोकार्टमीठे अंगूरकाले अंगूरब्लैक बैरीपके एवं मीठे अमरूदपके या मीठे संतरेखट्टी चैरी (यह फल जैली बनाने के लिये अनुपयुक्त है)। यदि इन फलों से जैली बनानी हो तो फलों के रस में पैक्टिन अलग से मिलायें ।

3. अधिक पैक्टिन किंतु कम अम्ल की मात्रा वाले फल :

 सेव की विशेष किस्म जिनमें अम्ल कम होता है । कच्चे केलेखट्टी चैरीअंजीरनाशपातीपपीता (इन फलों के रस में अम्ल मिश्रित कर जैली बनायी जा सकती है) ।

4. कम पैक्टिन किंतु अधिक अम्ल वाले फल:

खट्टीखुबानीचैरीआड़ूअनानासस्ट्राबेरी इत्यादि । इन फलों से जैली बनाने हेतु रस में अतिरिक्त पैक्टिन मिश्रित करना आवाश्यक है) ।

5. बहुत कम पैक्टिन एवं बहुत कम अम्ल की मात्रा वाले फल :

पकी खुबानीअधिक पकी बेरीपका आड़ूअनाररस बेरीस्टॉबैरी एवं अधिक पके अन्य फल । इन फलों का उपयोग जैली बनाने हेतु बिलकुल न करें । यदि फिर भी इन फलों का उपयोग जैली के निर्माण के लिये करना ही है तो फिर फलों के रस में अलग से अम्ल और पैक्टिन मिलाना होगा।

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