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आहार

Thursday, 19 December 2024

आँवले के मुरब्बे के निर्माण की वैज्ञानिक विधि

आँवले के मुरब्बे के निर्माण की वैज्ञानिक विधि

            साबुत फल अथवा फलों के टुकड़ों अथवा लच्छों को चाशनी में परिरक्षित करने से मुरब्बा बनता है। चाशनी में लगभग 70 प्रतिशत शक्कर होती है । अच्छी तरह तैयार किये गये मुरब्बे में फल पारदर्शक, कुरकुरे व मिठास लिये होते है । मुरब्बा दो प्रकार का होता है :

  1. गीला मुरब्बा:  यह आँवला, बेल, सेव, आम, गाज़र    आदि से तैयार होता है ।
  2. सूखा मुरब्बा: यह पेठा अदरक करौंदा, पपीता, संतरे का छिल्के , चेरी एवं आम आदि से तैयार होता है ।    

 



मुरब्बा निर्माण का उद्देश्य:

मुरब्बा निर्माण का उद्देश्य, शक्कर में फल का परिरक्षण करना है ताकि ऋतु बीत जाने पर भी वर्ष भर खाने योग्य अवस्था में फल प्राप्त हो सके ।

 

मुरब्बा के निर्माण के सिद्धांत:

मुरब्बा के निर्माण के सिद्धांत निम्नानुसार है:

  1. नम उष्मा (Wet Heat) की सहायता से फल के विकर (Enzyme) निष्क्रिय करना ताकि फल स्वत: न पक पायें ।
  2. फलों को शक्कर के गाढ़ी चाशनी में रखना ताकि चाशनी के कारण सूक्ष्मजीव निष्क्रिय हो जायें तथा वे फलों को दूषित नहीं कर पायें ।
  3. स्वच्छता पूर्ण वातावरण से सूक्ष्मजीवों की संख्या न्यूनतम स्तर पर रखी जाती है ताकि फलों को दूषित नहीं कर पायें ।

 

आवश्यक सावधानियाँ :

  1. फलों का चुनाव पूर्ण विकसित, आकर्षक, अच्छी गंध वाले आकार में समान तथा अधपके होना चाहिये।
  2. सभी बर्तन स्टेनलैस स्टील के ही उपयोग करें।
  3. चुने हुये  फलों को तेज़  स्टेनलैस स्टील के काँटे से ही गोदें ताकि चाशनी फलों में सरलता से भर जाये । आँवले के फल को गोदने हेतु विशेष प्रकार का गोदना भी बाज़ार में उपलब्ध हैं जिसमें ताँबे के बने कई काँटे, लकड़ी के मूठ में लगे होते हैं  । इस प्रकार के गोदने से आँवले में एक बार में ही कई छेद बनाये जा सकते हैं । लोहे के काँटे को कभी भी उपयोग में नहीं लें अन्यथा आँवले काले पड़ जायेंगे ।
  4. मुरब्बा बनाने के लिये हमेशा मीठे पानी का ही उपयोग करें ।
  5. खाद्य प्रसंस्करण ज़मीन पर बैठ कर नहीं करें बल्कि ऊँचे स्थान पर करें जैसे प्लैट्फॉर्म, तख्त अथवा टेबल इत्यादि ।
  6. प्रसंस्करण के समय चूड़ियों में कपड़ा बाँध कर ढक लें, सिर में टोपी पहन लें अथवा बाल बाँध लें ।
  7. हाथ के नाखून काट कर बिना नेल पॉलिश के रखें  ।
  8. हाथ अच्छी गुणवत्ता वाले साबुन तथा बहते हुये स्वच्छ एवं मीठे पानी से भली-भाँति धोयें तथा स्वच्छ व सूखी तौलिया से पोंछें । 
  9. खाद्य उत्पाद सर्वथा गैस चूल्हे पर ही बनायें, कोयला सिगड़ी अथवा लकड़ी वाली सिगड़ी पर नहीं बनायें अन्यथा धुँयें की महक तैयार उत्पाद में आ सकती है ।   

 

आँवले का गीला मुरब्बा :

       गीले मुरब्बे में आँवले का मुरब्बा सर्वश्रेष्ठ माना जाता है । आयुर्वेद के अनुसार आँवले  का मुरब्बा नेत्र ज्योति एवं स्वास्थ्य के लिये उत्तम होता है । आँवले में उपस्थित कसैलापन दूर करने के लिये आँवले को प्रसंस्कृत करने में अधिक समय लगता है । यह समयावधि 10-14 दिन तक की होती है ।

 

आँवले के आयुर्वेदिक गुण:

कच्चा आँवला हरे रंग का तथा ठोस एवं सख्त होता है जो पकने पर हलका पीला एवं गुलाबी रंग का हो जाता है तथा फल की सख्ती में कमी आ जाती है । मुख्यत: आँवला कसैले स्वाद का होता है जो कि ठंडी तासीर अथवा प्रकृति  (Potency) का होता है । यह वात तथा कफ वर्धक होता है किंतु पित्त का शमन करता है ।


आँवले का पोषणमान:

आँवले में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में होता है साथ ही विटामिन-ए अच्छी मात्रा में उपस्थित होता है । इस फल के प्रति 100 ग्राम आँवले के खाने योग्य भाग में उपस्थित पोषक तत्व इस प्रकार होते हैं: जल तत्व-81.8 ग्रा., रेशा-3.4 ग्रा., कार्बोज़ (कार्बोहायड्रेट)-13.7 ग्रा., ऊर्जा-58 किलो कैलोरी, कैल्शियम-50 मिग्रा., फॉस्फोरस-20 मिग्रा., लौह तत्व-1.2 मिग्रा., विटामिन-सी-600 माईक्रोग्रा. विटामिन-ए 290 अंतराष्ट्रीय इकाई और कोलीन-256 माईक्रोग्राम ।

 

आँवले के उत्पाद:

आँवले के कई प्रकार के उत्पाद निर्मित होते हैं जो कि जनमानस के बीच बहुत पसन्द किये जाते हैं जैसे आँवले का खड़ा (साबुत) मुरब्बा, आँवले की कलियों (फाँकों) का मुरब्बा, आँवले का किसा हुआ मुरब्बा, आँवले के लड्डू, आँवले की बर्फी,  आँवले की कैंडी, आँवले का रस, आँवले की खड़ी सुपाड़ी, आँवले की किसी सुपारी, आँवले का चूर्ण तथा आँवले का अचार, बर्तन धोने का साबुन हाथ धोने का साबुन और सूखी स्वच्छ तौलिया। 

 

सामग्री:

           आँवला 1 किलो, शक्कर 1.5 से 1.75 किलो, नमक 160 ग्राम, फिटकरी, ताज़ा व रसीला नींबू-1 अथवा सिट्रिक ऐसिड- 1 छोटा चम्मच, सफेद और साफ मलमल का कपड़ा (कपड़ा जिससे आटा माड़ कर ढकते हैं )-1 वर्ग मीटर, ताँबे का गोदना अथवा स्टेनलैस स्टील का गंज (भगोना), झारा, गोल बड़ा चमचा, चाकू तथा अन्य बर्तन, तैयार सामग्री पैक करने के लिये 1 किलो (आवश्यकतानुसार क्षमता) की बोतलें / बरनी / डिब्बे  एवं आवश्यक मात्रा में बहता हुआ मीठा जल, गैस चूल्हा ।

 

आँवले का मुरब्बा बनाने कि विधि:

प्रथम दिवस:

  1. स्वस्थ्य,अधपके, पीले रंग के बड़े और एक आकार के, कम रेशे के, गूदेदार, रसीले, चमकदार, बिना छेद और दाग के फलों का चुनाव करें ।
  2. फलों को बहते हुये स्वच्छ एवं मीठे पानी में भली-भाँति धोयें ।
  3. फलों की डंठल / पत्ती हटा दें ।
  4. फलों को ब्लाँच करें । ब्लाँच करने के लिये स्टेंलैस स्टील के गंज में स्वच्छ एवं मीठे जल को उबालें। पानी में उबाल आने के पश्चात् चूल्हा तुरंत बन्द कर दें । अब  फलों को सफेद और साफ मलमल (सूती का कपड़ा जिससे आटा माड़ कर ढकते हैं) के कपड़े में पोटली बना कर तुरंत, पाँच मिनट के लिये गर्म पानी में डुबा कर रख दें । अब फलों को पानी से बाहर  निकाल कर दबा कर देखें कि फल कुछ नर्म पड़ जायें किंतु फल की फाँकें (कलियाँ) अलग न हों । इस प्रक्रिया को ब्लाँचिग कहते हैं । स्टेनलैस स्टील के गंज में सामान्य तापमान का स्वच्छ पेय ले, फलों की पोटली को तुरंत डुबायें ताकि फल आवश्यकता से अधिक गर्म नहीं हों । ब्लाँचिग के निम्नलिखित लाभ होते हैं : 

   ·  फल में उपस्थित एंज़ाईम (विकर: ऐसे जैव रसायनिक यौगिक जिनकी फल में उपस्थिति से फल पकते हैं) निष्क्रिय हो जाते हैं जिस कारण फलों के पकने की प्रक्रिया धीरे पड़ जाती है अथवा बन्द हो जाती है तथा फल आवश्यकता से अधिक पकने के कारण खराब नहीं होते । इस प्रक्रिया को फलों की ब्लांचिंग कहते हैं । यह प्रक्रिया लगभग 80 डिग्री सैल्सियस तापमान पर होती है ध्यान दीजीयेगा फलों को उबालना नहीं है । जल को उबालने की प्रक्रिया 100 डिग्री सैल्सियस तापमान पर होती है । फलों की ब्लांचिंग को कुकर में रख कर लगभग पाँच मिनट तक भाप देने से भी होती है जिससे कि फल मुलायम हो जाते हैं पर पकते नहीं हैं ।

  · आँवले के फलों को 100 डिग्री सैलसियस पर उबालने से फलों में विटामिन-सी की मात्रा कम हो जाती है किंतु फलों को सिर्फ 80 डिग्री पर गर्म करने पर विटामिन-सी की मात्रा, फल में बनी रहती है इसलिये फलों को उबाला नहीं जाता बल्कि ब्लाँच किया जाता है ।   

   ·   फलों की ब्लांचिंग की प्रक्रिया के उपरांत फलों को गोदना सरल हो जाता है ।

5. फलों को स्टेंलैस स्टील के काँटे अथवा ताँबे के गोदने से पूरी सतह को गहराई तक गोद दें । कृपया ध्यान दें की फलों की गोदाई के लिये लोहे के काँटों का उपयोग नहीं करें अन्यथा फल काले पड़ जायेंगे ।   

6. आँवले के फलों को स्वच्छ स्टेनलैस स्टील के गंज़ में रखें, फिर प्रति लीटर पानी में, 20 ग्राम की दर से, बुझा खाने वाला चूना भली-भाँति मिला घोल बनायें और फलों की गंज में इस प्रकार भरें जिससे सभी फल पूरी तरह से डूब जायें । गंज को स्टील के ढक्कन से ढक दें और फलों को इसी प्रकार से एक दिन के लिये रख दें ।  यह प्रक्रिया इसलिये की जाती है कि आँवले के फलों के कसैलेपन को कम किया जा सके और मुरब्बा स्वादिष्ट बन सके ।   

 

द्वितीय दिवस:

  1. आँवले के फलों को चूने के घोल से निकाल कर बहते हुये मीठे पानी में भली-भाँति धो लें ताकि फलों से चूना पूरी तरह धुल जायें ।
  2. आँवले के फलों को, प्रथम दिवस की तरह ही स्टेनलैस स्टील की स्वच्छ गंज में पूरी तरह डुबा कर अगले दिन तक स्टेनलैस स्टील के ढक्कन से ढक कर रखें ।

 

तृतीय दिवस :

  1. आँवले के फलों को बहते हुये मीठे पानी में भली-भाँति धो लें और पानी को निथार कर स्वच्छ स्थल में स्वच्छ चादर बिछा कर फलों को बिछा कर हवा लगने दें जिससे फलों की ऊपरी सतह भली- भाँति सूख जाये ।
  2. शक्कर की कुल मात्रा में से आधी  मात्रा निकालकर अलग कर लें । स्टेनलैस स्टील के गंज में क्रमानुसार एक पर्त शक्कर तत्पश्चात एक पर्त फल की डालते जायें । ध्यान रखें कि सबसे ऊपरी पर्त पर शक्कर डालें और बर्तन को स्टेनलैस स्टील से ढककर सुरक्षित स्थान पर रख दें ।

   

चतुर्थ दिवस:

  1. आँवले का रस, फलों से भीतर से बाहर निकल कर शक्कर में घुल जायेगी और चाशनी बन जायेगी। शक्कर की चाशनी को गाढ़ा करने के लिये, आँवले के फलों को चाशनी से, स्टेनलैस स्टील के गोल चम्म्च अथवा स्टेनलैस स्टील के चिमटे से निकाल कर स्टेनलैस स्टील के प्लेट अथवा थाली में रखें ।
  2. इसके पश्चात् चाशनी को तेज आँच में गर्म करते हुये तथा निरंतर स्टील के झारे से हिलाते हुये, बची हुई शक्कर की आधी मात्रा भी चाशनी में मिला दें । इस प्रकार चाशनी को गाढ़ा कर लें । चाशनी ठंडी होने पर आँवले के फलों को फिर से चाशनी में डाल दें । गंज को स्टेनलैस स्टील के ढक्कन से ढक कर रखें ।

 

पंचम दिवस:  

  1. आँवले के फलों को चाशनी से, स्टेनलैस स्टील के गोल चम्म्च अथवा स्टेनलैस स्टील के चिमटे से निकाल कर स्टेनलैस स्टील के प्लेट अथवा थाली में रखें ।
  2. इसके पश्चात् चाशनी को तेज आँच में गर्म करते हुये तथा निरंतर स्टील के झारे से हिलाते हुये, बची हुई शक्कर की आधी मात्रा को चाशनी में मिला दें और चाशनी को गाढ़ा कर लें । चाशनी ठंडी होने पर आँवले के फलों को फिर से चाशनी में डाल दें । गंज को स्टेनलैस स्टील के ढक्कन से ढक कर रखें ।      
ष्ठी दिवस:  

  1. आँवले के फलों को चाशनी से, स्टेनलैस स्टील के गोल चम्म्च अथवा स्टेनलैस स्टील के चिमटे से निकाल कर स्टेनलैस स्टील के प्लेट अथवा थाली में रखें ।
  2. इसके पश्चात् चाशनी को तेज आँच में गर्म करते हुये तथा निरंतर स्टील के झारे से हिलाते हुये, बची हुई शक्कर की पूरी मात्रा को चाशनी में मिला दें और चाशनी को गाढ़ा कर लें ।
  3. चाशनी को साफ करने के लिये 2-3 ग्राम सिट्रिक एसिड या नींबू का रस डालें । घोल के सतह पर किनारे की ओर शक्कर की गन्दगी  झाग के साथ एकत्रित होगी जिसे स्कम कहते हैं । पूरी गन्दगी (स्कम) को धीरे-धीरे चम्मच से बाह्रर निकाल कर चाशनी साफ कर लें ।
  4. चाशनी ठंडी होने पर आँवले के फलों को फिर से चाशनी में डाल दें । गंज को स्टेनलैस स्टील के ढक्कन से ढक कर रखें ।

 

सप्तम दिवस:

  1. आँवले में से रस निकलने के कारण चाशनी पतली हो जाती है । आँवले के फलों को चाशनी से, स्टेनलैस स्टील के गोल चम्म्च अथवा स्टेनलैस स्टील के चिमटे से निकाल कर स्टेनलैस स्टील के प्लेट अथवा थाली में रखें ।
  2. इसके पश्चात् चाशनी को निरंतर स्टील के झारे से हिलाते हुये,  तेज आँच में गर्म करें और चाशनी को  तब तक गाढ़ा करें जब तक एक तयार की चाशनी न बन जाये ।
  3. एक तार की चाशनी  बनाने के लिये चाशनी को थोड़ा ठंडा होने के उपरांत अँगूठे और तर्जनी उँगली के बीच एक बूँद चाशनी रख कर दबायें फिर अँगूठे और उँगली को दूर ले जा कर एक तार बना कर देखें । एक तार की (गाढ़ी) चाशनी तैयार होने पर, चाशनी को ठंडा करें । ठंडी चाशनी में आँवले के फलों को डालें और साबुत आँवले के मुरब्बे को तैयार पायें । तैयार मुरब्बे को स्वच्छ एवं सूखी बरनी में भरें बरनी का मुँह अच्छी प्रकार बन्द कर सुरक्षित स्थान पर रखें । मुरब्बा सेवन हेतु तैयार पायें ।


आग्रह:

अपने विचार, सुझाव और प्रश्न कृपया कमेंट बॉक्स में लिख कर भेजने की कृपा करें

सादर

प्रियतम अवतार मेहेरबाबा की जय जय जिनेन्द्र सदा

डॉ. किंजल्क सी. सिंह एवं डॉ. चन्द्रजीत सिंह   


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    प्रियतम अवतार मेहेरबाबा की जय जय जिनेन्द्र सदा

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